इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर विवाद: केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने जताई कड़ी आपत्ति.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले ने देशभर में विवाद खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि किसी महिला के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी खींचना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता, बल्कि इसे गंभीर यौन हमला माना जाएगा。

इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इसे पूरी तरह गलत बताया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के निर्णय से समाज में गलत संदेश जाएगा और महिलाओं की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। मंत्री ने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की है।

मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले का है, जहां एक नाबालिग लड़की के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि पीड़िता के स्तन पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी तोड़ना बलात्कार या उसके प्रयास के अंतर्गत नहीं आता, बल्कि यह निर्वस्त्र करने के इरादे से किया गया हमला है।

केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने इस फैसले की निंदा करते हुए कहा कि ऐसे निर्णय से महिलाओं के खिलाफ अपराधों को बढ़ावा मिल सकता है और न्याय प्रणाली में महिलाओं की आस्था कम हो सकती है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में संज्ञान लेने और उचित कार्रवाई करने की मांग की है।

इस बीच, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इस फैसले पर असहमति जताई है और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की योजना बना रही है। सरकार का मानना है कि ऐसे अपराधों के प्रति सख्त रुख अपनाने की आवश्यकता है ताकि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि इस फैसले से यौन अपराधों की परिभाषा और उनकी गंभीरता पर पुनर्विचार की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों और वरिष्ठ वकीलों ने भी इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की है और कहा है कि ऐसे मामलों में संवेदनशीलता और सख्ती दोनों की जरूरत है।

समाज के विभिन्न वर्गों से भी इस फैसले के खिलाफ आवाज उठ रही है। महिला संगठनों ने इस निर्णय की आलोचना करते हुए कहा है कि यह महिलाओं के खिलाफ हिंसा को कमतर आंकने जैसा है और इससे अपराधियों को प्रोत्साहन मिल सकता है।

देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है और क्या यह फैसला बदला जाएगा या नहीं। फिलहाल, यह मुद्दा देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है और महिलाओं की सुरक्षा के प्रति न्याय प्रणाली की संवेदनशीलता पर सवाल खड़े कर रहा है।

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