ओडिशा के बलांगीर की आदिवासी महिलाएं ‘महुला’ (महुआ फूल) की मिठास भरी फसल के लिए कड़ी मेहनत करती हैं, लेकिन बाजार और सरकारी समर्थन की कमी के कारण उन्हें महुआ के कड़वे दामों का सामना करना पड़ता है।

महुआ फूल, जो इन समुदायों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, अक्सर बिचौलियों द्वारा कम कीमतों पर खरीदा जाता है, जिससे मेहनतकश महिलाओं को उनकी मेहनत का उचित लाभ नहीं मिल पाता है।

बलांगीर क्षेत्र में महुआ फूल संग्रहकर्ताओं को एक विनियमित बाजार, प्रसंस्करण इकाइयों और पर्याप्त सरकारी संरक्षण की कमी के कारण शोषण और निराशा के चक्र में फंसा दिया गया है। इन महिलाओं को अक्सर अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचने के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर बनी रहती है। प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी के कारण, वे महुआ को मूल्य वर्धित उत्पादों में परिवर्तित नहीं कर पाती हैं, जिससे उनकी आय बढ़ाने की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं।

स्थानीय कार्यकर्ता और समुदाय के नेता सरकार से हस्तक्षेप करने और महुआ संग्रहकर्ताओं के लिए एक उचित बाजार प्रणाली स्थापित करने का आग्रह कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करने और सरकारी समर्थन प्रदान करने से इन आदिवासी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने और उनकी आजीविका में सुधार करने में मदद मिलेगी। ‘महुला’ न केवल उनकी आय का साधन है, बल्कि यह उनकी संस्कृति और परंपरा का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *