कच्चातिवु द्वीप पर फिर गरमाई बहस, भारत-श्रीलंका संबंधों में बना तनाव का कारण.

ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक महत्व को लेकर उठा विवाद.

पाक जलडमरूमध्य: भारत और श्रीलंका के बीच स्थित कच्चातिवु द्वीप एक बार फिर राजनीतिक और कूटनीतिक चर्चा का केंद्र बन गया है। यह छोटा, निर्जन द्वीप तमिलनाडु और श्रीलंका के बीच समुद्री सीमा में स्थित है और लगभग 285 एकड़ क्षेत्रफल में फैला हुआ है। भले ही यह द्वीप वर्तमान में श्रीलंका के अधिकार क्षेत्र में आता है, लेकिन भारत में इसके स्वामित्व को लेकर समय-समय पर विवाद उठता रहा है।

कच्चातिवु द्वीप का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व काफी गहरा है। तमिल मछुआरे दशकों से इस द्वीप का उपयोग विश्राम स्थल और पारंपरिक धार्मिक आयोजनों के लिए करते रहे हैं। हर वर्ष यहां सेंट एंथनी महोत्सव में बड़ी संख्या में भारतीय तीर्थयात्री भाग लेते हैं। इस द्वीप पर एक प्राचीन चर्च भी है, जिसे सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है।

वर्तमान विवाद की जड़ 1974 में भारत और श्रीलंका के बीच हुए समझौते में है, जिसके तहत भारत ने द्वीप पर अपना दावा छोड़ दिया था। हालांकि, तमिलनाडु की कई राजनीतिक पार्टियां और सामाजिक संगठन आज भी इसे ऐतिहासिक भूल मानते हैं। हाल ही में, कुछ राजनीतिक नेताओं द्वारा इस मुद्दे को फिर से उठाने के बाद मामला सुर्खियों में आ गया है।

तमिलनाडु के मछुआरे भी इस द्वीप को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि श्रीलंकाई नौसेना अक्सर उन्हें इस क्षेत्र में मछली पकड़ने से रोकती है, जिससे उनकी आजीविका पर असर पड़ता है।

भारत सरकार ने कहा है कि वह इस मामले पर संवेदनशीलता से विचार कर रही है और द्विपक्षीय वार्ताओं के माध्यम से मछुआरों की सुरक्षा और अधिकार सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

कच्चातिवु न सिर्फ दो देशों के बीच सीमांकन का मुद्दा है, बल्कि यह सांस्कृतिक जुड़ाव और समुद्री सीमाओं के भीतर अधिकारों की जटिलता का भी प्रतीक बन चुका है। अब देखना यह होगा कि आने वाले दिनों में यह मुद्दा किस दिशा में आगे बढ़ता है।

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