चुनाव आयोग मार्च में करेगा दो दिवसीय सम्मेलन, आधुनिक चुनाव प्रबंधन पर होगी चर्चा.

नई दिल्ली: चुनाव आयोग आगामी 4 और 5 मार्च को दो दिवसीय सम्मेलन आयोजित करेगा, जिसमें आधुनिक चुनाव प्रबंधन सहित कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा होगी।
यह सम्मेलन मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (CEOs) का पहला ऐसा सम्मेलन होगा, जब से 19 फरवरी को ज्ञानेश कुमार ने मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) का कार्यभार संभाला है।
पहली बार मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे एक जिला निर्वाचन अधिकारी (DEO) और एक निर्वाचक पंजीकरण अधिकारी (ERO) को भी इस सम्मेलन में नामांकित करें।
CEOs, DEOs और EROs राज्य, जिला और विधानसभा क्षेत्र स्तर के महत्वपूर्ण अधिकारी होते हैं, जो चुनाव संचालन में अहम भूमिका निभाते हैं।
चुनाव आयोग ने कहा कि यह सम्मेलन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के चुनाव अधिकारियों को एक साझा मंच प्रदान करेगा, जहां वे आपसी अनुभवों से सीख सकेंगे।
सम्मेलन में मतदाता सूची के अद्यतन, चुनावी पारदर्शिता, डिजिटल तकनीकों का उपयोग और चुनावी प्रक्रियाओं में सुधार पर मंथन होगा।
चुनाव आयोग आधुनिक चुनाव प्रबंधन और तकनीकी समाधान लागू करने के तरीकों पर चर्चा करेगा।
2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह सम्मेलन चुनावी रणनीतियों को मजबूत करने का प्रयास होगा।
अधिकारियों को चुनाव प्रक्रिया में साइबर सुरक्षा, मतदान प्रतिशत बढ़ाने और दिव्यांग मतदाताओं की सुविधा सुनिश्चित करने जैसे मुद्दों पर विचार-विमर्श करने को कहा गया है।
इस सम्मेलन में चुनाव आचार संहिता, सोशल मीडिया निगरानी, फर्जी मतदान रोकने और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने जैसे विषय भी शामिल होंगे।
इसके अलावा, ईवीएम और वीवीपैट मशीनों के सही उपयोग को लेकर भी चर्चा की जाएगी।
चुनाव आयोग चुनाव प्रक्रिया को अधिक प्रभावी और निष्पक्ष बनाने के लिए सुझावों को लागू करने पर विचार करेगा।
संभावना है कि इस सम्मेलन के दौरान कुछ नई चुनावी नीतियों की घोषणा भी की जा सकती है।
चुनाव आयोग ने कहा कि सभी राज्यों के अधिकारियों को इस सम्मेलन से चुनावी प्रक्रिया को और मजबूत बनाने का अवसर मिलेगा।
देश में निष्पक्ष और सुचारू चुनाव संपन्न कराना आयोग की प्राथमिकता होगी।
इस सम्मेलन से चुनावी तंत्र को पारदर्शी और मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
सभी प्रतिभागियों को सर्वश्रेष्ठ चुनावी प्रक्रियाओं को अपनाने और साझा करने का अवसर मिलेगा।
चुनाव आयोग का यह कदम भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को और सशक्त करने की दिशा में अहम माना जा रहा है।