नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकारों को मेडिकल बोर्ड के गठन में देरी को लेकर कड़ी फटकार लगाई।

यह मामला नीतीश कटारा हत्याकांड में दोषी विकास यादव की अंतरिम जमानत याचिका से जुड़ा है, जिसमें उसने अपनी मां की गंभीर बीमारी और आईसीयू में भर्ती होने का हवाला दिया है।

जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ ने दोनों राज्य सरकारों के रवैये पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि राज्य को निष्पक्ष होना चाहिए। विकास यादव ने अपनी मां की स्वास्थ्य स्थिति का आकलन करने के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का अनुरोध किया था, ताकि उनकी जमानत याचिका पर विचार किया जा सके।

अदालत ने इस बात पर आश्चर्य जताया कि विकास यादव की मां के स्वास्थ्य का आकलन करने के लिए मेडिकल बोर्ड गठित करने में इतना समय क्यों लग रहा है। पीठ ने कहा कि यह एक साधारण प्रक्रिया है और इसमें अनावश्यक देरी नहीं होनी चाहिए।

दिल्ली सरकार के वकील ने अदालत को सूचित किया कि उन्होंने मेडिकल बोर्ड के गठन के लिए आवश्यक प्रक्रिया शुरू कर दी है और जल्द ही बोर्ड का गठन कर दिया जाएगा। वहीं, उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने भी इसी तरह का आश्वासन दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने दोनों राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे तत्काल प्रभाव से मेडिकल बोर्ड का गठन करें और विकास यादव की मां के स्वास्थ्य की विस्तृत रिपोर्ट अदालत में पेश करें। अदालत ने स्पष्ट किया कि इस मामले में किसी भी तरह की और देरी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

विकास यादव को 2002 के नीतीश कटारा हत्याकांड में दोषी ठहराया गया है और वह वर्तमान में जेल में सजा काट रहा है। उसने अपनी मां की गंभीर बीमारी के आधार पर अंतरिम जमानत मांगी है।

अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई [भविष्य की तारीख] को निर्धारित की है, जिस दिन मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पेश की जानी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद विकास यादव की अंतरिम जमानत याचिका पर विचार करेगा।

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी राज्य सरकारों की कार्यशैली पर सवाल उठाती है और यह संदेश देती है कि अदालती आदेशों का पालन समयबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए, खासकर जब मामला किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवीय आधार से जुड़ा हो।

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