पत्नी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द, अदालत ने कहा – केवल रिश्ते की निकटता से नहीं माना जा सकता अपराध में संलिप्त
नई दिल्ली: एक अहम फैसले में अदालत ने एक आरोपी की पत्नी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अकेले संबंध, विश्वास या प्रेम की निकटता को अपराध में भागीदारी का आधार नहीं माना जा सकता, जब तक कि उसके खिलाफ ठोस साक्ष्य न हों।
यह मामला एक गंभीर आपराधिक मामले से जुड़ा था, जिसमें आरोपी पति पर मुख्य अपराध का आरोप था, जबकि उसकी पत्नी को केवल इस आधार पर अभियुक्त बनाया गया कि वह आरोपी के बेहद करीब थी और संभवतः उसे कुछ जानकारी रही होगी।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष के पास कोई ठोस सबूत नहीं है जो यह साबित कर सके कि पत्नी ने किसी भी रूप में अपराध में मदद की, शामिल रही या उसे प्रोत्साहित किया। न्यायाधीश ने यह भी टिप्पणी की कि अधिकांश मामलों में रिश्ते के कारण भावनात्मक जुड़ाव होता है, लेकिन यह जुड़ाव अपराध की सहभागिता नहीं बन जाता।
न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि कानून हर नागरिक को निष्पक्ष सुनवाई और उचित जांच का अधिकार देता है। रिश्तों की आड़ में किसी निर्दोष को आरोपी बनाना न केवल कानून का दुरुपयोग है, बल्कि यह न्याय की प्रक्रिया के साथ भी अन्याय है।
यह फैसला उन मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, जहां रिश्तों के आधार पर लोगों को अपराध में घसीटने की प्रवृत्ति देखी जाती है। अदालत ने साफ किया कि कानूनी कार्रवाई केवल उसी के खिलाफ होनी चाहिए जिसके खिलाफ प्राथमिक तौर पर संलिप्तता के प्रमाण हों, न कि केवल उसके किसी रिश्तेदार या करीबी के खिलाफ बिना साक्ष्य के।
इस फैसले को मानवाधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
