वाराणसी: बनारस की शहनाई को भौगोलिक संकेतक (जीआई) टैग मिलना, इस वाद्य यंत्र को बनाने वाले कारीगरों और महान उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को एक सच्ची श्रद्धांजलि है।

जिस उत्सवपूर्ण वाद्य यंत्र ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के माध्यम से वैश्विक पहचान हासिल की, उसे अब अपनी विशिष्ट पहचान मिल गई है।

शहनाई, जो अपनी मधुर और भावपूर्ण ध्वनि के लिए जानी जाती है, सदियों से बनारस की सांस्कृतिक और संगीत विरासत का अभिन्न अंग रही है। उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने इस वाद्य यंत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और इसे शास्त्रीय संगीत के मंच पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया।

बनारस की शहनाई को जीआई टैग मिलने से इस क्षेत्र के कारीगरों में खुशी की लहर दौड़ गई है। उनका मानना है कि इससे न केवल उनकी कला और शिल्प को पहचान मिलेगी, बल्कि उनकी आजीविका भी सुरक्षित होगी।

जीआई टैग यह सुनिश्चित करता है कि बनारस में बनी शहनाई अपनी विशिष्ट गुणवत्ता और उत्पत्ति बनाए रखेगी। यह टैग उन कारीगरों के हितों की रक्षा करेगा जो पारंपरिक तरीकों से इस वाद्य यंत्र को बनाते आ रहे हैं और नकली उत्पादों को बाजार में आने से रोकेगा।

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के परिवार के सदस्यों ने भी इस उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि यह टैग उस्ताद जी की विरासत को चिरस्थायी बनाने में मदद करेगा और आने वाली पीढ़ियां भी बनारस की शहनाई की मधुर ध्वनि से परिचित हो सकेंगी।

बनारस की शहनाई का जीआई टैग, वास्तव में, इस वाद्य यंत्र के निर्माताओं और उस्ताद बिस्मिल्लाह खान जैसे महान कलाकारों को एक योग्य सम्मान है, जिन्होंने इसे विश्व मंच पर प्रतिष्ठित किया। यह बनारस की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी प्रतीक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *