जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शशि थरूर ने हिंदू धर्म और आध्यात्म पर रखे विचार.

थरूर ने कहा कि प्राचीन काल में ईश्वर का विचार सरल था। हिंदू धर्म में निराकार और निर्गुण ईश्वर की अवधारणा थी, जैसे इस्लाम में, और यह किसी एक पद्धति को अनिवार्य नहीं मानता। समय के साथ लोगों ने सगुण ब्रह्म की कल्पना की, जिससे गणेश जैसे रूप अस्तित्व में आए। उन्होंने स्वामी विवेकानंद का उल्लेख करते हुए कहा कि शिव, अल्लाह और यीशु सभी एक ही शक्ति के रूप हैं। अदी शंकराचार्य ने भी किसी एक मार्ग को सर्वोत्तम नहीं माना। भगवद गीता में कर्म को प्रमुख माना गया है, यानी फल की इच्छा किए बिना कार्य करना चाहिए। महात्मा गांधी भी इसी विचारधारा के समर्थक थे।
थरूर ने रोहिंग्या मुद्दे का जिक्र करते हुए कहा कि हिंदू धर्म सभी को स्वीकार करता है, लेकिन आज इस विषय पर भी चर्चा हो रही है। इस दौरान फ्रांसिस मिराल्स ने कहा कि आज के दौर में लोग आंतरिक शांति और खुशी की तलाश कर रहे हैं। प्राचीन ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में समझाने वाली पुस्तकें लोगों को मार्गदर्शन दे सकती हैं।