कर्नाटक की 85 वर्षीय शिक्षिका को ‘सम्मानजनक मृत्यु’ का अधिकार मिलने की उम्मीद.

वह दक्षिण भारत की पहली महिला बन सकती हैं, जिन्हें यह अधिकार मिलेगा।
मुख्य बिंदु:
- करिबसम्मा ने पिछले 24 वर्षों से ‘सम्मानजनक मृत्यु’ के लिए संघर्ष किया।
- कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत कानून को लागू किया।
- उन्हें गंभीर बीमारियों के कारण लंबे समय से कष्ट हो रहा है।
- उन्होंने 30 वर्षों तक शिक्षक के रूप में सेवा दी।
- उनका मामला हाईकोर्ट के इतिहास में पहला अनोखा मामला था।
- उन्होंने कानून को लागू करने के लिए कई याचिकाएं दायर की थीं।
- सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ‘पैसिव यूथनेशिया’ को मंजूरी दी थी।
- वह सम्मानजनक मृत्यु की मांग करने वाली राज्य की पहली वरिष्ठ नागरिक हैं।
- सरकार के फैसले से अन्य पीड़ितों को भी राहत मिल सकती है।
- कर्नाटक सरकार ने इस साल ‘राइट टू डाई विद डिग्निटी’ को लागू किया।
- उनकी अपील को सामाजिक और कानूनी स्तर पर समर्थन मिला।
- उनका कहना है कि वह लंबे समय से पीड़ा में जी रही हैं।
- परिवार और करीबी लोग उनके फैसले का सम्मान कर रहे हैं।
- उनका मामला भविष्य में कई लोगों के लिए मिसाल बन सकता है।
- देश में ‘सम्मानजनक मृत्यु’ पर अभी भी बहस जारी है।
- कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।
- इस मामले ने राज्य में नैतिक और कानूनी बहस को जन्म दिया है।
- युवाओं के बीच भी इस फैसले को लेकर चर्चा हो रही है।
- करिबसम्मा का कहना है कि यह उनका अंतिम अधिकार है।
- सरकार और चिकित्सा क्षेत्र इस मामले को बारीकी से देख रहे हैं।