नई दिल्ली: वक्फ अधिनियम की सुनवाई के दौरान, छह भाजपा शासित राज्यों ने हाल ही में संशोधित कानून का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।

इन राज्यों ने शीर्ष अदालत में अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं, जिनमें वक्फ अधिनियम को रद्द किए जाने पर संभावित प्रशासनिक और कानूनी प्रभावों का विवरण दिया गया है।
इन राज्यों ने अपनी याचिकाओं में तर्क दिया है कि वक्फ अधिनियम का संशोधन वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन को सुव्यवस्थित करने के लिए आवश्यक था। उन्होंने यह भी कहा कि यह संशोधन मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा करता है और वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकता है।
राज्यों ने अदालत को बताया कि यदि वक्फ अधिनियम को रद्द किया जाता है, तो इससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अराजकता फैल जाएगी और कई कानूनी विवाद उत्पन्न होंगे। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इससे राज्य सरकारों के लिए वक्फ संपत्तियों का प्रशासन करना मुश्किल हो जाएगा।
इन राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह वक्फ अधिनियम के संशोधन को बरकरार रखे और मुस्लिम समुदाय के हितों की रक्षा करे। उन्होंने यह भी कहा कि यह अधिनियम राज्यों को वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन में मदद करेगा।
राज्यों ने अपनी याचिकाओं में यह भी उल्लेख किया है कि वक्फ अधिनियम के संशोधन को लागू करने से पहले मुस्लिम समुदाय के साथ व्यापक विचार-विमर्श किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि इस संशोधन को संसद में पारित किया गया था, जिसमें सभी दलों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इन राज्यों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है और इस मामले की सुनवाई के दौरान उनके तर्कों पर विचार करने का आश्वासन दिया है। अदालत ने कहा कि वह इस मामले में सभी पक्षों के तर्कों को ध्यान से सुनेगी और उसके बाद ही कोई निर्णय लेगी।
वक्फ अधिनियम का संशोधन देश में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। मुस्लिम संगठनों ने इस संशोधन का विरोध किया है और इसे मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन बताया है। हालांकि, सरकार ने इस संशोधन का बचाव किया है और कहा है कि यह वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए आवश्यक है।