आदिवासी भूमि गैर-आदिवासियों को खेती के लिए भी गैरकानूनी.

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा है कि आदिवासियों की कृषि भूमि को गैर-आदिवासियों को किसी भी उद्देश्य के लिए, यहां तक कि खेती के लिए भी नहीं बेचा जा सकता है। अदालत ने महेंद्रसिंह दिग्विजय सिंह द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए यह आदेश दिया। याचिकाकर्ता ने आदिवासी व्यक्ति से कृषि भूमि खरीदी थी और इस बिक्री को चुनौती दी गई थी।

न्यायमूर्ति [संबंधित न्यायाधीशों के नाम, यदि उपलब्ध हों] की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि महाराष्ट्र भूमि राजस्व संहिता और अन्य संबंधित कानूनों के प्रावधान आदिवासियों की भूमि के हस्तांतरण पर स्पष्ट प्रतिबंध लगाते हैं ताकि उनकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। अदालत ने माना कि इन प्रावधानों का उद्देश्य आदिवासियों को उनकी जमीनों से वंचित होने से बचाना है और इस सुरक्षा को कमजोर नहीं किया जा सकता।

अदालत ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि भूमि कृषि उद्देश्य के लिए खरीदी गई थी, इसलिए इसे हस्तांतरित किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून में ऐसा कोई अपवाद नहीं है और आदिवासियों की कृषि भूमि केवल आदिवासी व्यक्तियों को ही बेची जा सकती है। इस फैसले से आदिवासी समुदायों के भूमि अधिकारों को और मजबूती मिलेगी।

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