सिविल जज चयन में 3 साल अभ्यास नियम को चुनौती।
नई दिल्ली: सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद के लिए न्यायिक सेवा परीक्षा में उम्मीदवारों के लिए तीन साल के वकालत अभ्यास को अनिवार्य करने वाले नियम को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है। यह याचिका एक practising advocate और न्यायिक सेवा के इच्छुक उम्मीदवार चंद्रसेन यादव द्वारा दायर की गई है, जिससे देश में न्यायिक भर्ती प्रक्रियाओं को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। इस याचिका का उद्देश्य हजारों न्यायिक सेवा के उम्मीदवारों के लिए अवसरों को खोलना है।
याचिकाकर्ता चंद्रसेन यादव का तर्क है कि न्यायिक सेवा में प्रवेश के लिए तीन साल के वकालत अभ्यास की अनिवार्यता एक अनावश्यक और भेदभावपूर्ण शर्त है। उनका कहना है कि यह नियम उन योग्य उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में शामिल होने से रोकता है जिनके पास अकादमिक योग्यता और कानून की गहरी समझ तो है, लेकिन तत्काल तीन साल का व्यावहारिक अभ्यास अनुभव नहीं है। याचिका में तर्क दिया गया है कि यह शर्त योग्य उम्मीदवारों के लिए अवसरों को अनुचित रूप से सीमित करती है और न्यायिक प्रणाली में प्रवेश के लिए एक अनावश्यक बाधा पैदा करती है।
इस याचिका का परिणाम न्यायिक सेवा भर्ती प्रक्रिया पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है और देश भर में सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की भर्ती के नियमों को बदल सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि उच्चतम न्यायालय इस मामले पर क्या रुख अपनाता है, खासकर जब न्यायिक नियुक्तियों में योग्यता, अनुभव और अवसरों के बीच संतुलन बनाए रखने की बात आती है। यह मामला न्यायिक सुधारों की दिशा में भी महत्वपूर्ण हो सकता है और उन हजारों युवाओं के लिए आशा की किरण बन सकता है जो न्यायिक सेवा में शामिल होने का सपना देखते हैं लेकिन इस अनिवार्य अनुभव की शर्त के कारण बाधा महसूस करते हैं।
