DMK का सवाल: क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल संविधान से ऊपर हैं?

डीएमके के मुखपत्र ‘मुरासोली’ ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर तीखा हमला बोला है।

मुरासोली ने सवाल उठाया कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल संविधान से ऊपर हैं?

उपराष्ट्रपति के बयान पर आपत्ति जताई जिसमें उन्होंने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकता।

मुरासोली ने कहा कि यह बयान भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों का अपमान है।

संपादकीय में पूछा गया कि किस आधार पर धनखड़ ने ऐसा दावा किया?

मुरासोली ने तंज कसते हुए कहा, अगर राष्ट्रपति केंद्र सरकार के बिलों को होल्ड पर रख दें तो क्या उपराष्ट्रपति चुप रहेंगे?

राज्यपाल जब वर्षों तक राज्य सरकार के बिलों को रोकते हैं, तो क्या वही तर्क लागू नहीं होता?

मुरासोली ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान की समीक्षा और स्पष्टीकरण मांगने का अधिकार है।

अगर सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव विवाद सुन सकता है, तो वह आदेश क्यों नहीं दे सकता?

लेख में यह भी कहा गया कि अनुच्छेद 142 के तहत दिया गया फैसला संविधान सम्मत होता है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की आलोचना करना भारतीय लोकतंत्र के खिलाफ है।

न्यायपालिका का सम्मान करना लोकतांत्रिक प्रणाली का मूलभूत हिस्सा है।

मुरासोली ने केंद्र सरकार की नीतियों को भी निशाने पर लिया।

उन्होंने कहा कि जब राज्यपाल राज्य सरकार के फैसलों को रोकते हैं, तब केंद्र चुप क्यों रहता है?

सवाल किया गया कि अगर राष्ट्रपति कैबिनेट की सलाह को नजरअंदाज करें तो केंद्र क्या करेगा?

मुरासोली ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों की रक्षा करने की बात कही।

उन्होंने कहा कि संविधान सभी के लिए सर्वोच्च है – राष्ट्रपति, राज्यपाल और उपराष्ट्रपति भी।

लोकतंत्र में संस्थानों के बीच संतुलन जरूरी है।

न्यायपालिका की गरिमा को चुनौती देना संविधान के खिलाफ है।

मुरासोली ने कहा कि संविधान की रक्षा में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका सर्वोपरि है।

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